,एक ऐसी तकलीफ
जो शादी शुदा जोड़े को सामाजिक और मानसिक तौर पर
परेशां ही नहीं , अपितू समाज में एक चर्चा का विषय खड़ा कर देतीं हैं . शादी को सात आठ माह क्या बिते की बस , बहू रानी के गर्भ धारण की चर्चाएँ , आसमान छु लेती हैं . आपको भी आश्चर्य होगा की एक मरीज़ की माँ , बेटे और बहु को केकर आंई और कहने लगी , " डॉ. साहिब , मेरा बेटा कारोबार के सिलसिले में आसाम रहता है , और लगभग दो माह बहू के साथ रह लेता है . विवाह को दस वर्ष हो गए हैं , अभी तक बहू के पैर भारी नहीं हो रहे , कृपया जाँच कर इनका उचित उपचार करें . "
मैं अवाक् सा रह गया , काटो तो खून नहीं . बहू के चेहरे से लगा का की यह परिवार , उसे काफी प्रताड़ित कर रहे हैं ., आखिर मैं बोल पड़ा , " माताजी आप तो इतनी बुजुर्ग हैं , फिर आप ही बताइए , जब आपका बेटा ही यहाँ नहीं रहता तो संतान प्राप्ति के लिए शादी के बाद के समय को गिनने से क्या फायदा ? जब ये दोनों पति पत्नी साथ रहने लगे, तभी संतान प्राप्ति के बारे में सोचियेगा."
मेरे इतना कहने पर दोनों महिलाएं कुछ सकुचाते हुए धन्यवाद कह कमरे से बाहर चली गयी.इस उदहारण से कोई भी आसानी से समझ सकता है की हमारे यहाँ शादी के बाद संतान का होना कितना अनिवार्य माना जाता है.
एक बार एक पति पत्नी मेरे पास आये. पति ने बताया की उसकी पत्नी के बच्चा नहीं होता. मेरे पूछने पर की कितने बच्चे अधूरे गिरे है , वह बोला ,"नहीं ,डॉक्टर साहब , हमारी शादी को तीन महीने ही हुए हैं ,पर अभी तक गर्भ नहीं ठहरा है."
उस पति की नादानी पर एक बार तो अजीब सा लगा, फिर भी उन्हें समझा बुझा कर भेज दिया.
एक अन्य दंपत्ति आये .पति महोदय बोले ,"डॉक्टर साहब, यह मेरी तीसरी बीवी है, पर इसके भी उन दोनों की तरह बच्चा नहीं हो रहा.जरा इस की जांच कर बताइए की आखिर क्या वजह है."पति की इस बात पर में मुस्कराए बिना न रह सका.में सोचने लगा,यह भी पुरुष है कैसा जो तीसरी बीवी के भी बच्चा न होने का दोष उसी पर थोप रहा है और अपनी जांच की बात नहीं करता.में ने उसे अपनी जांच करवाने को कहा. जांच के बाद पता चला की उस के वीर्य में जीवित शुक्राणुओं की संख्या बिलकुल नहीं है.
दोषारोपण नहीं :
कई बार ऐसा देखने में आया है की महिला में कोई शारीरिक विकार नहीं होता और जाने अनजाने पुरुष अपनी कमी का दोष भी उसी पर थोप देता है, जब की अधिकतर कमी पति में ही होती है और मानसिक यातना झेलनी पड़ती है, पत्नी को.पुरुष आम तौर पर इस भय से अपनी जांच नहीं करवाते की कहीं उन में ही दोष न निकल आये, पुरुष न केवल जांच से कतराते है ,बल्कि उन के घर वाले भी उन्हें प्राय मजबूर नहीं करते .फलतः बांझपन की स्थिति बनी रहती है. इसी स्थिति में बांझपन की शिकार स्त्रियों को चाहिए कि बजे पूजा पाठ या अंधविश्वासों में पड़ने के अपने पति कि जांच करवाएं .कभी कभी बांझपन पत्नी के लिए अभिशाप बन जाता है. इसी मान्यता है कि जब तक स्त्री माँ न बन जाए , उस का जीवन अधुरा रहता है,इसी सामाजिक मान्यता के कारण इसी स्त्रियाँ मानसिक रूप से भी अपने आप को संतुलित नहीं रख पति,फलतः वे मानसिक तनाव का शिकार हो जाती हैं.
बांझपन का कारण पुरुष या स्त्री में से कोई भी हो सकता है.अतः यदि विवाह के उपरान्त दो या तीन वर्ष के सहवास के बाद भी बांझपन कि शिकायत हो तो डाक्टरी जांच करवा लेनी चाहिए, क्योंकि कम से कम इतना समय पति पत्नी एकदूसरे को समझने में ले लेते हैं. पर स्मरण रहे,इस अवधि के दौरान किसी गर्भनिरोधक व्यवस्था का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.
सामान्यतः पुरुष में संतानोपत्ति कि सामर्थ्य न होने का कारन शारीरिक स्थूलता, थकावट,मानसिक तनाव,तंग वस्त्रों का प्रयोग,सम्भोग कि विधि से अनभिज्ञता होता है, इस के अलावा अधिक सिगरेट एवं शराब का सेवन भी इस के कारण हो सकते हैं.
स्त्रियों में बांझपन का कारन प्रायः योनिमार्ग कि सिकुरण, मासिक धर्म का विकार, बच्चेदानी के मुहँ का बंद होना, उस का टेढ़ामेढ़ा होना या हारमोंस कि गडबड़ी होता है.
डॉक्टर कि सलाह जरुर : चाहे पुरुष हो या नारी, जिस किसी में भी दोष पाया जाए, उसे डॉक्टर कि देखरेख में नियमित रूप से इलाज करना चाहिए.डाक्टरी सलाह लेने में पति पत्नी को किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए.डाक्टरी जांच से पूर्व यदि दंपत्ति अपने सम्भोग करने के समय में परिवर्तन कर ले तो अच्छा रहता है. संतान प्राप्ति के लिए उन्हीं दिनों फलदायी होता है, जब स्त्री के अंडाशय से अंडे निकलते हैं, यह समय मासिक धर्म आने के १४ दिन पहले होता है.यदि स्त्री का इस समय तापक्रम लें तो हम पायेंगे कि इस समय शरीर के तापक्रम में ०.५ से एक डिग्री फारेनहाइट कि वृद्धि होती है.एक अंडे के जीवित रहने के समय को ध्यान में रखते हुए यदि सम्भोग मासिक धर्म आने के १७ दिन पहले से १२ दिन पहले तक (यानी इन ६ दिनों में) किया जाए तो शक्रानुओ के अंडे से मिलने कि संभावनाएं अधिक होती हैं.इन सब के बावजूद यदि बच्चा न हो तो डाक्टरी जांच करवा कर नियमित रूप से इलाज करवाना चाहिए.बांझपन कोई ऐसा रोग नहीं है, जिस का इलाज असंभव हो.
आज के युग में यदि पुरुष में कोई खराबी हो तो कृत्रिम गर्भाधान या टेस्ट ट्यूब बेबी कि मदद से भी गर्भाधान किया जा सकता है.
वेसे भारत जेसे देश में जहाँ धार्मिक मान्यताएँ अधिक महत्त्व रखती हैं ,बांझपन का इल्लग कुछ मुश्किल हैं, वरना यदि लोग कृत्रिम वीर्य स्थापन (आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन )को मान्यता दे दें तो कुछ हद तक बांझपन दूर हो सकता है. पर इस के लिए आवश्यक है -जागरूकता की,विचारों में परिवर्तन की .
यदि भारत में इस विषय पे विचारों में परिवर्तन न भी हो तो इस प्रकार के युगलों को मानसिक स्थायित्व रखते हुए इस वस्तुस्थिति को स्वीकारना चाहिए ,अपने अन्दर हीन भावना रखने ,दुखी एवं निराश रहने के स्थान पर उपयोगी कार्यों में लग जाना चाहिए या फिर आपसी तालमेल बिख कर बच्चा गोद ले लेना चाहिए, लिस से जीवन को जीने योग्य बनाया जा सके.
3 comments:
डॉ. मुकेश राघव , मुझे आपका आलेख बांझपन पर काफी उपयोगी लगा , क्योंकि लगता है , आपने मेरे बारे में ही लिखा है . मेरा आपसे वादा है कि आज से मैं मेरी पत्नी के साथ ही जीवन करूंगा . मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद
A nice article on infertility , In lay man's language written article is quite informative.
Thanks
बांझपन पर लेख काफी अच्छा लगा . आलेख ज्ञानवर्धक है. पाठकों को इस से काफी लाभ होगा .
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