Friday, August 5, 2011

बढती उम्र: समस्याएँ और समाधान

               महिलाओं में रजोनिवृति या मासिक धर्म  की समाप्ति के साथ ही एक महत्वपूर्ण परिवर्तन शुरू हो जाता है. कुछ महिलाओं में रजोनिवृति अचानक आ जाती है और कुछ में भले ही अचानक न आती हो, किन्तु इस से पूर्व कुछ समय तक मासिक धर्म अनियमित हो सकता है. इस शारीरिक परिवर्तन के फलस्वरूप उस महिला को पर्याप्त नींद नहीं आती. इस के अलावा शरीर में गिरावट, भावनात्मक अस्थिरता एवं चिडचिडापन पैदा हो जाता है.
अभी कुछ दिनों पूर्व एक महिला आई और बोली," डाक्टर साहब, मैं दिन प्रतिदिन मोटी होती जा रही हूँ, चर्बी बढ रही है और सेक्स के प्रति भी उदासीन होती जा रही हूँ." ये सब परिवर्तन भी बढती उम्र और शरीर में 'एस्ट्रोजन' या नारी हारमोन के कम मात्र में उत्पन्न  होने से होते हैं.
इस हारमोन की कमी से उपर्युक्त लक्षणों के अलावा चेहरे पर बाल उगने लगते हैं. छातियों में दर्द रहने लगता है एवं हड्डियों में भी विकार उत्पन्न होने लगते  है. वेसे देखा जाए तो रजोनिवृति कोई हौआ नहीं है, बशर्ते कि स्त्री या इस से भी अधिक उस का पति उस की शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को समझता हो और वह ये मान कर  चले कि मासिक धर्म कि भांति यह भी एक शारीरिक  धर्म है.जिसमे पति के सहारे की बहुत जरूरत होती है .
          अक्सर महिलाएं डाक्टर के पास यह शिकायत ले कर आती है कि उन को रजोनिवृति से तो कोई नुक्सान नहीं है, पर वे अपने शरीर को हर तरह से सुडोल रखना चाहती है.
           निस्संदेह इसी स्त्रियाँ बढती उम्र में भी जवानी का नकाब ओढ़ लेना चाहती हैं. इस के लिए आज कल 'एस्ट्रोजन पुनः स्थापन' चिकित्सा दी जाती है. पर इस चिकित्सा से शरीर में अन्य विकार उत्तपन हो सकते हैं. अतः बेहतर है कि बढती उम्र के इस कटु सत्य को अच्छी  तरह से समझा जाए.
              इस अवस्था में दांतों का गिरना एक आम बात है. इस के अलावा आमाशय एवं आँतों में पाचन रसों कि कमी हो जाती है, जिस के फलस्वरूप पाचन प्रणाली में बाधा पहुचती है और भोजन अच्छी  तरह पच  नहीं पाता. इस के साथ साथ गुर्दों के कार्य में शिथिलता एवं हृदय धमनीय प्रणाली में भी परिवर्तन आ जाते हैं.
ध्यान देने योग्य बातें :
                 यदि बढती उम्र में आहार सम्बन्धी कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो शारीरिक परिवर्तनों को किसी हद तक कम किया जा सकता है. वजन को सामान्य बनाये रखने के लिए बढती उम्र में कैलोरी का उपयोग व्यवस्थित कर लेना चाहिए.
                    मोटी महिलाओं को कैलोरी के उपयोग कि व्यवस्था कुछ इस प्रकार करनी चाहिए कि उन का वजन धीरे धीरे अपेक्षित सामान्य स्तर पर आ जाये.इस अवस्था में प्रोटीन का सेवन चर्बी कि अपेक्षा अधिक करना चाहिए. 
                इस आयु में कैल्सियम का उपयोग प्रायः  कम हो पता है .बहुत सी बड़ी उम्र कि महिलाऐं अपने आहार में दूध को इतना महत्व नहीं देती, अतः वे इस तत्त्व कि कमी से पीड़ित  रहती हैं. हारमोन तथा अन्य तत्वों कि कमी के फलस्वरूप ही बड़ी उम्र कि महिला कि यदि कोई हड्डी टूट जाये तो उस के उपचार में बहुत समय लगता है.
              बड़ी उम्र कि महिलाऐं प्रायः खून कि कमी से पीड़ित  रहती हैं, जो इस बात का सूचक है कि उनके आहार में लौह तत्त्व कि कमी है. इसी स्थिति में उन्हें अधिक मात्र में हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए.
बढती उम्र कि महिलाओं को प्रतिदिन ८ से १० गिलास तरल पदार्थ लेना चाहिए. यदि पर्याप्त तरल पदार्थो का सेवन किया जाये तो गुर्दों से फालतू ठोस पदार्थ निकल जायेगा, जिस से गुर्दे अधिक अची तरह काम कर सकेंगे.अपने को सदा जवान समझिये 
               बहुत सी बड़ी उम्र कि महिलाऐं अपना भोजन अच्छी  तरह नहीं चबा पाती, इसलिए वे अपने आहार में मॉस, मछलियाँ व सब्जियां लेना छोड़ देती है. इसी महिलाओं को अधिक मात्र में फल व दूध का सेवन करना चाहिए.
                     आहार पर ध्यान देने के साथ साथ बढती उम्र कि महिलाओं को अच्छा  जीवन जीने के लिए अपने सामाजिक जीवन एवं मानसिक स्वास्थय  को भी अच्छा रखना चाहिए.उनसे अपने को सदा जवान समझना चाहिए, और जहाँ तक हो सके घरेलु काम काज करते रहना चाहिए.काम धंधे में व्यस्त  रहने से वे मानसिक तनाव से दूर रहती हैं.
बढती उम्र की महिलाओं को समाज कल्याण एवं मनबहलाव के लिए क्लब का सदस्य बन जाना चाहिए, उन्हें अपने घर में भी मनोरंजन की उचित व्यवस्था करने का प्रयत्न करना चाहिए. महिलाओं को सुबह शाम बाहर घूमने भी जाना चाहिए.

                               इन सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए बढती उम्र की महिलाओं को अपनी दिनचर्या ,में इस तरह परिवर्तन कर लेना चाहिए जिससे वे जीवन के इस कटु सत्य का आसानी से हंसीखुशी सामना कर सकें .

Saturday, July 16, 2011

एनीमिया से बचाव .......


    हाल ही में एक महिला अपने साथ अपनी बहु को लाई और बोली,"डाक्टर साहब ,बहू को चाहे कितना भी खिला दो,दिन प्रतिदिन पीली पड़ती  जा रही है.सारा दिन कभी इधर गिरेगी ,कभी उधर ,किसी काम में इसका दिल ही नहीं."
         पुराणी नुस्खे देखने से पता चला कि इस महिला कि जांच पहले भी कई बार कि जा चुकी थी.मैंने उस कि जाँच कि,महिला में एनीमिया के संकेतों के अलावा कुछ नज़र नहीं आया.अतः मैंने उस से कहा,"देखिये, आप कि बहू को खून कि कमी कि वजह से कमजोरी है.वैसे दवा लिख दी है,पर जब तक एनीमिया के कारन का पता नही लग जाता,पूर्ण रूप से निदान नही हो पायेगा.आप  कल सुबह इनके खून व शौच कि जांच करवा लें.
       अगले दिन सुबह ही दोनों   हाल ही में एक महिला अपने साथ अपनी बहु को लाई और बोली,"डाक्टर साहब ,बहू को चाहे कितना भी खिला दो,दिन प्रतिदिन पीली पड़ती  जा रही है.सारा दिन कभी इधर गिरेगी ,कभी उधर ,किसी काम में इसका दिल ही नहीं."
         पुराणी नुस्खे देखने से पता चला कि इस महिला कि जांच पहले भी कई बार कि जा चुकी थी.मैंने उस कि जाँच कि,महिला में एनीमिया के संकेतों के अलावा कुछ नज़र नहीं आया.अतः मैंने उस से कहा,"देखिये, आप कि बहू को खून कि कमी कि वजह से कमजोरी है.वैसे दवा लिख दी है,पर जब तक एनीमिया के कारन का पता नही लग जाता,पूर्ण रूप से निदान नही हो पायेगा.आप  कल सुबह इनके खून व शौच कि जांच करवा लें.
  उपस्थित थी.खून कि जांच करने पर पाया गया कि मरीज का हिमोग्लोबिन केवल सात ग्राम प्रतिशत था एवं शौच में एक प्रकार के कीड़े  पाए गये,जो शरीर का खून चूसते रहते हैं.डाक्टर ने उन्हें कीड़े मारने कि दवा दी,साथ में खून बढ़ाने की भी दवाइयाँ लिख कर दी.कुछ ही अरसे बाद उस महिला में वे लक्षण गायब हो गए थे.
        हमारे रक्त में कई प्रकार के रक्त कण होते हैं,परन्तु जिन रक्त कणों का सम्बन्ध लाल रंग से होता है उन रक्त कणिकाओ में हिमोग्लोबिन नमक पदार्थ होता है जो की रक्त को लाल रंग प्रदान करता है.उपस्थित थी.खून कि जांच करने पर पाया गया कि मरीज का हिमोग्लोबिन केवल सात ग्राम प्रतिशत था एवं शौच में एक प्रकार के कीड़े  पाए गये,जो शरीर का खून चूसते रहते हैं.डाक्टर ने उन्हें कीड़े मारने कि दवा दी,साथ में खून बढ़ाने की भी दवाइयाँ लिख कर दी.कुछ ही अरसे बाद उस महिला में वे लक्षण गायब हो गए थे.उपस्थित थी.खून कि जांच करने पर पाया गया कि मरीज का हिमोग्लोबिन केवल सात ग्राम प्रतिशत था एवं शौच में एक प्रकार के कीड़े  पाए गये,जो शरीर का खून चूसते रहते हैं.डाक्टर ने उन्हें कीड़े मारने कि दवा दी,साथ में खून बढ़ाने की भी दवाइयाँ लिख कर दी.कुछ ही अरसे बाद उस महिला मे
वे लक्षण गायब हो गए थे.
हमारे शरीर में हर १०० मिलीलीटर रक्त में प्राय १३ से १४ ग्राम हिमोग्लोबिन होता है.अगर किसी व्यक्ति के प्रति १०० मिलीलीटर  रक्त में ११ ग्राम या उससे कम   हिमोग्लोबिन होता है तो उसे रक्ताल्पता या एनेमिक कहते हैं व इस रोग को एनीमिया की संज्ञा दी गयी है.
रक्त को बनाने एवं स्वस्थ रखने के लिए हमारे शरीर को लौह,फोलिक एसिड ,विटामिन बी-२ ,प्रोटीन, विटामिन-सी जैसे आवश्यक तत्वों की जरूरत रहती है.भोजन में इन तत्वों में से किसी की कमी,खासतौर पर लौह की कमी से शरीर में रक्त की कमी उत्तपन हो जाती है .
एनीमिया अधिकतर गर्भवती स्त्रिओं और इसे छोटे बच्चों को जो अभी स्कूल नहीं जा रहे ,में अधिकतर पाया जाता है.
    बाल्यकाल और गर्भावस्था, इन दोनों ही अवस्थाओं में शरीर को लौह की अधिक मात्रा में जरूरत होती है.वेसे भी महिलाओ को अपने भोजन में पुरुषों  से अधिक लौह तत्वों का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि मासिक धर्म में लौह तत्व भी रक्त के साथ विसर्जित हो जाते हैं,इसके अलावा जो महिलाऐं स्तनपान करवा रही होती हैं, उन्हें भी लौह तत्व की कमी के कारण एनीमिया हो जाता है.
      अभी कुछ महीने पूर्व एक महिला जो की सातवीं बार गर्भवती हुई थी,( क्योंकि सामजिक परम्पराओं  के कारण उसके पति ने वंश चलाने  के लिए लड़के की कामना में उसे ६ लडकियों को जन्म देने पर मजबूर कर दिया था ) जब वह मेरे पास आई तो,प्रसव पीड़ा तो दूर,उस महिला के रक्त में हिमोग्लोबिन की मात्र केवल ४ ग्राम प्रतिशत थी.इसका कारण मात्र एक ही था की हर बार प्रसव में बहुत खून निकल जाता था.इसके अलावा दूसरा कारण था,उसके बढ़ते बच्चों को दिन प्रतिदिन अधिक खाने की जरुरत,फलतः माँ की लिए कम भोजन बचता था.
बात यही ख़तम नहीं हो जाती.प्रसव में अधिक रक्त स्त्राव होने की वजह से उस महिला को एक बोतल खून देने का निर्णय किया गया.इसके लिए उसके पति को रक्तदान करने को कहा गया तो उसके होश फाकता हो गये.  अंततः अस्पताल से ही खून का इन्तेजाम करके उस महिला की जान बचाई गयी .
रक्त की कमी यानि एनीमिया के रोगी बहुत जल्दी थक जाते हैं,उन्हें भूख कम लगती है,ज्यादा परिश्रम करने से उनकी सांस फूलने लगती है,त्वचा का रंग पीला हो जाता है,नाखूनों का रंग भी काफी हल्का गुलाबी हो जाता है.
इन लक्षणों के अलावा यदि किसी व्यक्ति के नाखून चम्मच की तरह हो गये हो या वे आसानी से टूट जातें  हों तो समझना चाहिए की उसमें खून की ज्यादा कमी है.
गर्भावस्था में एनीमिया जानलेवा तो हो ही सकता है ,इसके अलावा अगर महिला एनेमिक है तो बच्चा कम वजन का होगा,इस स्थिति में बच्चा समय से पहले भी हो सकता है.

एनीमिया से बचने  का तरीका आसान है मसलन भोजन में लौह पदार्थो का अधिक सेवन ,अधिक मात्रा में लौह तत्त्व मुखाताया हरी सब्जियों,दाल,अंडा एवंम मॉस में पाया जाता है.दैनिक जीवन में इन पदार्थो के सेवन से एनीमिया के होने की सम्भावना काफी कम होती है.इस सब के उपरांत  भी यदि कोई  व्यक्ति एनीमिया से ग्रसित हो तो  उसे डाक्टरी देखरेख में उचित जांच करवा कर ही लौह तत्त्व युक्त गोलियों और ताकत की दवाइयां सेवन करनी चाहियें.
ये ध्यान रखें की इलाज खुद न करके
डाक्टरी देखरेख में ही करवाएं,इसके अलावा कभी भी लौह तत्त्व युक्त दवाइयों का सेवन भूखे पेट न करें,इससे पेट में घाव बन जाने की संभावना रहती है.
विशेषकर गर्भवती महिलाओं को अपने निकटवर्ती चिकित्सालय में नियमित रूप से एन्तिनेतल क्लिनिक्स में जाना चाहिए.इन क्लिनिक्स में महिलाओं की नियमित रूप से हिमोग्लोबिन की जांच होती है एवं एनीमिया को उसकी प्रारंभिक अवस्था में ही उचित उपचार करके रोक दिया जाता है.
  

Thursday, July 14, 2011

बांझपन लाइलाज नहीं ....

बाँझपन 
,एक ऐसी तकलीफ 
जो शादी शुदा जोड़े को सामाजिक और मानसिक तौर पर 
परेशां ही नहीं , अपितू समाज में एक चर्चा का विषय खड़ा कर देतीं हैं . शादी को सात आठ माह क्या बिते की बस , बहू रानी के गर्भ धारण की चर्चाएँ , आसमान छु लेती हैं . आपको भी आश्चर्य होगा की एक मरीज़ की माँ , बेटे और बहु को केकर आंई और कहने लगी , " डॉ. साहिब , मेरा बेटा कारोबार के सिलसिले में आसाम रहता है , और लगभग दो माह बहू के साथ रह लेता है . विवाह को दस वर्ष हो गए हैं , अभी तक बहू के पैर भारी नहीं हो रहे , कृपया जाँच कर इनका उचित उपचार करें . "

मैं अवाक् सा रह गया , काटो तो खून नहीं . बहू के चेहरे से लगा का की यह परिवार , उसे काफी प्रताड़ित कर रहे हैं ., आखिर मैं बोल पड़ा , " माताजी आप तो इतनी बुजुर्ग हैं , फिर आप ही बताइए , जब आपका बेटा ही यहाँ नहीं रहता तो संतान प्राप्ति के लिए शादी के बाद के समय को गिनने से क्या फायदा ? जब ये दोनों पति पत्नी साथ रहने लगे, तभी संतान प्राप्ति के बारे में सोचियेगा."
मेरे इतना कहने पर दोनों महिलाएं कुछ सकुचाते हुए धन्यवाद कह कमरे से बाहर चली गयी.
इस उदहारण से कोई भी आसानी से समझ सकता है की हमारे यहाँ शादी के बाद संतान का होना कितना अनिवार्य माना जाता है.
एक बार एक पति पत्नी मेरे पास आये. पति ने बताया की उसकी पत्नी के बच्चा नहीं होता. मेरे पूछने पर की कितने बच्चे अधूरे गिरे है , वह बोला ,"नहीं ,डॉक्टर साहब , हमारी शादी को तीन महीने ही हुए हैं ,पर अभी तक गर्भ नहीं ठहरा है."
उस पति की नादानी पर एक बार तो अजीब सा लगा, फिर भी उन्हें समझा बुझा कर भेज दिया.
एक अन्य दंपत्ति आये .पति महोदय बोले ,"डॉक्टर साहब, यह मेरी तीसरी बीवी है, पर इसके भी उन दोनों की तरह बच्चा नहीं हो रहा.जरा इस की जांच कर बताइए की आखिर क्या वजह है."
पति की इस बात पर में मुस्कराए बिना न रह सका.में सोचने लगा,यह भी पुरुष है कैसा जो तीसरी बीवी के भी बच्चा न होने का दोष उसी पर थोप रहा है और अपनी जांच की बात नहीं करता.में ने उसे अपनी जांच करवाने को कहा. जांच के बाद पता चला की उस के वीर्य में जीवित शुक्राणुओं की संख्या बिलकुल नहीं है.
दोषारोपण नहीं :
कई बार ऐसा देखने में आया है की महिला में कोई शारीरिक विकार नहीं होता और जाने अनजाने पुरुष अपनी कमी का दोष भी उसी पर थोप देता है, जब की अधिकतर कमी पति में ही होती है और मानसिक यातना झेलनी पड़ती है, पत्नी को.पुरुष आम तौर पर इस भय से अपनी जांच नहीं करवाते की कहीं उन में ही दोष न निकल आये, पुरुष न केवल जांच से कतराते है ,बल्कि उन के घर वाले भी उन्हें प्राय मजबूर नहीं करते .फलतः बांझपन की स्थिति बनी रहती है. इसी स्थिति में बांझपन की शिकार स्त्रियों को चाहिए कि बजे पूजा पाठ या अंधविश्वासों में पड़ने के अपने पति कि जांच करवाएं .कभी कभी बांझपन पत्नी के लिए अभिशाप बन जाता है. इसी मान्यता है कि जब तक स्त्री माँ न बन जाए , उस का जीवन अधुरा रहता है,इसी सामाजिक मान्यता के कारण इसी स्त्रियाँ मानसिक रूप से भी अपने आप को संतुलित नहीं रख पति,फलतः वे मानसिक तनाव का शिकार हो जाती हैं.
बांझपन का कारण पुरुष या स्त्री में से कोई भी हो सकता है.अतः यदि विवाह के उपरान्त दो या तीन वर्ष के सहवास के बाद भी बांझपन कि शिकायत हो तो डाक्टरी जांच करवा लेनी चाहिए, क्योंकि कम से कम इतना समय पति पत्नी एकदूसरे को समझने में ले लेते हैं. पर स्मरण रहे,इस अवधि के दौरान किसी गर्भनिरोधक व्यवस्था का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.
सामान्यतः पुरुष में संतानोपत्ति कि सामर्थ्य न होने का कारन शारीरिक स्थूलता, थकावट,मानसिक तनाव,तंग वस्त्रों का प्रयोग,सम्भोग कि विधि से अनभिज्ञता होता है, इस के अलावा अधिक सिगरेट एवं शराब का सेवन भी इस के कारण हो सकते हैं.


स्त्रियों में बांझपन का कारन प्रायः योनिमार्ग कि सिकुरण, मासिक धर्म का विकार, बच्चेदानी के मुहँ का बंद होना, उस का टेढ़ामेढ़ा होना या हारमोंस कि गडबड़ी होता है.
डॉक्टर कि सलाह जरुर : चाहे पुरुष हो या नारी, जिस किसी में भी दोष पाया जाए, उसे डॉक्टर कि देखरेख में नियमित रूप से इलाज करना चाहिए.डाक्टरी सलाह लेने में पति पत्नी को किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए.डाक्टरी जांच से पूर्व यदि दंपत्ति अपने सम्भोग करने के समय में परिवर्तन कर ले तो अच्छा रहता है. संतान प्राप्ति के लिए उन्हीं दिनों फलदायी होता है, जब स्त्री के अंडाशय से अंडे निकलते हैं, यह समय मासिक धर्म आने के १४ दिन पहले होता है.यदि स्त्री का इस समय तापक्रम लें तो हम पायेंगे कि इस समय शरीर के तापक्रम में ०.५ से एक डिग्री फारेनहाइट कि वृद्धि होती है.


एक अंडे के जीवित रहने के समय को ध्यान में रखते हुए यदि सम्भोग मासिक धर्म आने के १७ दिन पहले से १२ दिन पहले तक (यानी इन ६ दिनों में) किया जाए तो शक्रानुओ के अंडे से मिलने कि संभावनाएं अधिक होती हैं.इन सब के बावजूद यदि बच्चा न हो तो डाक्टरी जांच करवा कर नियमित रूप से इलाज करवाना चाहिए.बांझपन कोई ऐसा रोग नहीं है, जिस का इलाज असंभव हो.
आज के युग में यदि पुरुष में कोई खराबी हो तो कृत्रिम गर्भाधान या टेस्ट ट्यूब बेबी कि मदद से भी गर्भाधान किया जा सकता है.


बहुत कम लोगो में बांझपन लाइलाज होता है.इसे दम्पत्तियों को अपने अन्दर कभी हीन भावना को पनपने नहीं देना चाहिए.
वेसे भारत जेसे देश में जहाँ धार्मिक मान्यताएँ अधिक महत्त्व रखती हैं ,बांझपन का इल्लग कुछ मुश्किल हैं, वरना यदि लोग कृत्रिम वीर्य स्थापन (आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन )को मान्यता दे दें तो कुछ हद तक बांझपन दूर हो सकता है. पर इस के लिए आवश्यक है -जागरूकता की,विचारों में परिवर्तन की .
यदि भारत में इस विषय पे विचारों में परिवर्तन न भी हो तो इस प्रकार के युगलों को मानसिक स्थायित्व रखते हुए इस वस्तुस्थिति को स्वीकारना चाहिए ,अपने अन्दर हीन भावना रखने ,दुखी एवं निराश रहने के स्थान पर उपयोगी कार्यों में लग जाना चाहिए या फिर आपसी तालमेल बिख कर बच्चा गोद ले लेना चाहिए, लिस से जीवन को जीने योग्य बनाया जा सके.

Saturday, June 25, 2011

गर्भवती महिला की देखभाल ....

         मात्रतव की लालसा नारी में प्रकति प्रदत है . और इसी लालसा के वशीभूत हो कर वह मात्रतव की प्राप्ति के लिए गर्भावस्था की कठिन परेशानी का सामना को न केवल सहज ही झेल लेती है , बल्कि इन छोटी मोटी तकलीफों में भी  सुख की अनुभूति करती है .
           गर्भावस्था में छोटी मोटी कई  तकलीफें होती रहती हैं . किसी  महिला को कोई तकलीफ होती है , तो किसी अन्य को कोई अन्य तकलीफ .
गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक महिलाओं के शरीर को अनेको परिवर्तनों से गुजरना पड़ता है ., परंतू मात्र्तव की लालसा और गौरवपुरण पद पाने के लिए , यदि कुछ कष्ट भी हों तो वे भी सहनीय होतें हैं .

गर्भावस्था में प्राय : जी मिचलाने लगता है . कभी कभी उल्टियाँ भी होने लगती हैं . ये लक्षण प्राय: गर्भावस्था के प्रथम तीन महीनों में पाए जाते हैं और अधिकतर उस समय होतें हैं , जब सुबह के समय महिला अपना सिर बिस्तर पर से उठाती है . गर्भवती स्त्री को सुबह बिस्तर से उठने से पहले दो तीन बिस्कुट या फिर थोडा सा ग्लूकोस खा लेना चाहिए ., फिर कुछ देर  लेटे रह कर ही , विश्राम कर उठाना चाहिए .
कभी कभी गर्भावस्था में उल्टिओं की संख्या इतनी हो जाती है , की गर्भवती को अस्पताल में भर्ती करवा कर उपचार करवाना चाहिए . इस रोग को डाक्टारी भाषा में हापरेमेसिस ग्राविदेरम कहते हैं . इस रोग में उल्टियों की संख्या इतनी होती है की शरीर में पानी की कमी हो जाती है . 
           गर्भावस्था में चूंकि स्त्री के गर्भ में एक शिशु का निर्माण  हो रहा होता है , इसलिए हर कोई समझ सकता है की उस शिशु के लिए भरण पोषण गर्भवती द्वारा ही प्रदान किया जाता है . जिससे महिला कमजोरी महसूस करती है . भूख कम लगती है ., सिर में दर्द रहने लगता है ., चक्कर  आने लगतें हैं .
           हर गर्भवती स्त्री  के शरीर  मैं इस दौरान लौह तत्व और खनिज तत्व की कमी हो जाती है .  यह तत्व खून बनाने के लिए जरूरी होता है .
लौह तत्व की कमी को दूर करने के लिए पालक , पपीता , संतरा और टमाटर , आदि का सेवन करना चाहिए .
मांसहारिओं के लिए लौह तत्व कलेजी , मांस और अंडे में पाया जाता है . अनाज के छिलकों में भी लोहांश होते हैं , अत : आते को छान कर उस का चोकर नहीं फेंकना चाहिए . भोजन के बारे में इस सावधानी से लौह तत्व की कमी नहीं रहती .यदि  किसी कारण से इन तत्वों की कमी हो जाये तो आयरन और फोलिक एसिड युक्त दवाइयां डाक्टर की सलाह से लेनी चाहियें .
      बच्चे के विकास के बारे में जिज्ञाषा काफी महिलाओं के अंदर रहती है . ब्लॉग पर चित्र के माध्यम से प्रस्तुत है. :


कई बार गर्भवती  महिला के पेट में जलन होने लगती है. यह उदार में अधिक मात्रा में पित जिम्मेवार है , इस अवस्था में स्त्री को अधिक मात्रा में पानी पीते रहना चाहिए और समय समय पर दूध का सेवन अधिक लेना चाहिए . दूध ताकतवर होने के साथ साथ पेट में बन रहे एसिड को भी कम करता है . 
          गर्भावस्था के अंतिम दिनों में अधिकतर महिलाऐं , साँस लेने की समस्या से भी गर्भस्त महिलाओं में ग्रस्त रहती हैं , यह बच्चे के आकार में बढोतरी की वजय से होता है .
         इसके अलावा गर्भवती  महिला कब्ज़ , पीठ के दर्द और पेट में दर्द से ग्रषित रहतीं हैं . 
          आजकल अधिकतर अस्पतालों में गर्भवती  महिला की जाँच निशुल्क  होती है . तुरंत अस्पताल में महिला को पंजीकरण करवा लेना चाहिए , जिससे समय पर टी. टी . की सुई लग जाये और अनेकों जांचे , जो भी जरूरी हों , हो जाये .
       गर्भवती  महिला को चाहिए की प्रसव अस्पताल में ही करवाए और नव जात शिशु का पंजीकरण , जरूर करवा लें . फिर देखें घर में झूले को फलता फूलता ., और घर में खुशी का माहोल बना दें .
      गर्भवती  महिला के प्रसव के बाद ही वंस आगे से आगे बरता रहता है . परिवार में खुशी पैदा करने वाली नारी को नमन . क्यों न इस ब्लॉग के माद्यम से संकल्प लें , की लड़के और लड़की में किसी भी तरह का अंतर ना रखें . आज के युग में अनेकों छेत्रों में स्त्रियाँ , पुरुषों से आगे हैं , वर्ना परिवार को जोड़ कर रखने वाली , मात्रा महिला ही होती है . 

Sunday, June 5, 2011

जुकाम स्वत: ठीक होने वाला रोग है !!!

        " मैं तो इस जुकाम से परेशान हो गया हूँ . तीन दिन नाक ठीक रहती है , फिर वही जुकाम , कई दिनों से यह चक्कर चल रहा है , न तो दफ्तर में नीचे गर्दन कर काम किया जाता है , इसीलिए दफ्तर में भी ठीक तरह से नहीं बैठ सकता ."
 यह कोई अनहोनी स्थिती  नहीं है. अकसर लोगों को यह शिकायत रहती है . जुकाम स्वत: ठीक होने वाला रोग है ., जो की अधिकतर वातावरण के तापमान में अंतर के कारण होता है , अन्यथा यह वायरस की  बीमारी है , जो उपरी श्वास तंत्र के संकर्मण के कारण से भी हो जाती है . जिससे  खाश तकलीफ : खांशी , गले में खराबी , नाक का बहना या रूक जाना और छींके आना प्रमुख हैं . करीब २०० से अधिक वायरसों के कारण जुकाम होता है , इनमें से राइनो वायरस ३० से ३५ % रोगीओं में जिम्मेवार होता है , अन्य वायरस कोरोना , एडिनो और परा इन्फ़्लुएन्ज़ा  वायरस इत्यादि ..
वायरस इतने ज्यादा हैं की जिनकी वजह से हमारा शरीर इन वायरसों के विरुद्ध , प्रतिरोधक  बल पैदा नहीं कर पाता . इसीलिए यह बीमारी बार बार हो जाती है .
आमतौर पर बच्चों में एक साल में जुकाम १० से १२ बार हो जाता है . सामान्यत : सर्दियों में जुकाम ज्यादा होता है .
जुकाम में से निकलने वाले पदार्थ या स्त्राव को छूने , हवा में फैलाने  से और उसे किसी अन्य द्वारा हवा के माध्यम से , मसलन छींकने और खांसने से यह रोग , फैलता जाता है .
जुकाम से गर्सित रोगी संवय अपने हाथ आँखों के लगा ले या फिर इस रोग से गर्सित रोगी द्वारा छुई , हुई वस्तु को छू ले , तो भी यह वायरस दुसरे वयक्ति को जुकाम हो जायेगा . 
जुकाम का पता संकर्मण  होने के २ से ४ दिन के बाद लगता है . 
प्रमुख दिकतें , जो जुकाम से होती हैं , वे इस प्रकार हैं :-
  • नाक का रूक जाना या बहना 
  • गले में खराश 
  • छींकना 
  • आवाज़ में भारीपन 
  • खांशी 
  • आँखों से पानी का गिरना 
  • बुखार 
  • सीरदर्द
  • थकावट , इत्यादि .
जुकाम किसी भी गंभीर बीमारी से अधिक परेशां कर देता है . उपचार से बचाव ज्यादा कारगर है . फिर भी मरीज़ को आराम करना चाहिए .
प्रचुर मात्रा में पानी पीना चाहिए , खाश कर बच्चों को , गरारे गुनगुने पानी के करने चाहियें , एलर्जी   से बचाव के लिए डॉक्टर की सलाह पर किसी दर्द निवारक दवा का सेवन कर सकते हैं . वर्ना जुकाम स्वत : ही ठीक होने वाला रोग है . 
  

Tuesday, May 24, 2011

हँसना स्वास्थ्य के लिए जरूरी है..........

       हँसना स्वास्थ्य  के लिए जरूरी है . क्या आपको ज्ञात है , आज की इस भागम भाग  की जिन्दगी में हँसना भी एक वजन लगने लगा है . , जो स्वास्थ्य  के लिए हानिकारक है . खुल कर हंसने से शरीर में रक्त का संचार अधिक होता है , जिसके कारण
 शरीर में चुस्ती बनी रहती है . , और  शरीर के हर अंग में स्फूर्ती आती है .
      हमें जो जीवन ईश्वर ने दिया है , इसकी कीमत का मूल्यांकन  करना , किसी के बस की बात नहीं है , परंतू एक कटु सत्य है , कि जिन्दगी एक समतल धरातल के सामान नहीं है .,  दुख सुख से भरी हुई , उतर चढाव से भरी हुई जिन्दगी है . जिसे  जीनाऔर   भोगना  ही होगा , चाहे हंस कर या रो कर ... 
        आप हँसेंगे तो दुनियां भी हँसेगी .दुनियां को अपनी परेशानियों के दुखरे   रोयेंगे तो मात्र एक मजाक का  पात्र बन जायेंगे . कभी सोचियेगा .,इस युग में कितने ऐसे  होंगे , जिन्होंने गिरती दीवार के पास आकर , उसे रोकने का प्रयास किया हो , शायद एक भी नहीं , इसी प्रकार हमारे दुखों को , अगर हम खुल कर हंस लेंगे तो ,  थोड़ी सी देर के लिए ही  शांति प्राप्त करेंगे , और दुखों  को भूल जायेंगे , दुखों का रोना , रोते रहने से , यह समाज भी आप के सामने आप का शुभ   चिन्तक और बाद में , पीछे से आपकी बुराई करते भी देर नहीं लगाता , तो क्यों न हम आज से ही खुल के हंसने की आदत डाल लें ., वर्ना  एक झूठी  मुस्कराहट तो चेहरे पर , रख सकतें हैं . फिर देखिये , आप के स्वास्थय पर कितना अनूकुल प्रभाव आएगा .
         चलो इसी क्रम में , मैं भी एक धटना सुना  दूं . मेरे बड़े भाई साहिब डॉ. जोगा सिंह जी ने कुछ , तस्वीरें भेजी , जो की रोगों से सम्बंधित  थीं , पर सचाई में तो वे  तस्वीरें काल्पनिक हैं , पर मात्र  मुझे , हंसाने के लिए , भाई साहिब ने भेजी  थीं ., और उन्हें मैं इसी ब्लॉग में आप के सामने  प्रस्तुत कर ..... इसी क्रम में , कहना चाहूँगा कि , खुल कर हंसने से अच्छी दवा संसार में कोई नहीं है . खूब हंसो , खुल कर हंसो ... और निरोगी रहो .

Saturday, May 21, 2011

रसोली एक नज़र में .... - डॉ. मुकेश राघव



रसोली , प्राय: महिलाओं में उनके गर्भवती होने का भ्रम   पैदा करता है , कि " उनके पेट में बच्चा तो नहीं ठहर गया ? " , इसी प्रकार की महिलाएं  बच्चा  नहीं होने के कारण मानसिक रूप से काफी परेशान होती हैं , समाज की सबसे बड़ी त्रासदी , ये ही , है कि वह समाज में हेय निगाहों से देखी  जाती  है , इस पुरुष प्रधान समाज में , किस किस तरह से पीरीत  नहीं होती , यह मात्र एक नारी ही बता सकती है ? इस  बीमारी से गर्शित नारी के मासिक धर्म में रक्त स्त्राव अधिक होता है , इसी स्थिति में पति  और पत्नी  , दोनों को ,  समाज का  त्रिष्कार कर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए , यह रसोली जिसे डोक्टोरी भाषा में बच्चे दानी में फैब्रोइड कहते हैं , इसे पनपने देने से पहले ही इसका इलाज़ करवा कर सुखी जीवन जिया जा सकता है , यह रसोली २० से ४० वर्ष की महिलाओं में से १० प्रतिशत में ही पाई जाती है , संतान हीनता ही इसका मुख्य लक्षण है , ४५-५० उम्र के बाद इस रसोली की बढ़ोतरी रूक जाती है , और मासिक धर्म में रक्त स्त्राव भी कम मात्रा में होता है , यह रसोली साधारणतया संतरे के आकार की होती है , और इसकी संख्या २० से २०० तक हो सकती है , परन्तु घबराने की कोई बात नहीं है  , समय रहते इसका उपचार अति आवश्यक है , अन्यथा  रसोली किसी और प्रकार के रोग को जन्म दे सकती है, मसलन कैंसर इत्यादि ,        मासिक धर्म में रक्त स्त्राव ज्यादा होने से इस प्रकार की स्त्रियों
 में खून की कमी भी हो जाती है , इसके अलावा कब्ज़ और बार बार पिशाब की हाज़त रहना , इसके मुख्य लक्षण हैं 
          यह कभी भी यह नहीं सोचना है की इस बीमारी के साथ साथ महिला गर्भ धारण भी कर सकती है , इसी लिए तुरंत से तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए , इस बीमारी के कारण यदि बाँझपन रहता है तो चिंता न कर गर्भ धारण के दुसरे तरीके अपनाये जा सकते हैं , और यदि चिकित्सक शल्य क्रिया की सलाह दे तो भी ऑपरेशन से डरना नहीं चाहिए , शल्य क्रिया के बाद गर्भ धारण करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं , यदि  केवल  मासिक धर्म में रक्त स्त्राव अधिक होता है और उम्र ४५-५० वर्ष हो तो बच्चे दानी को निकला देना चाहिए , वैसे आजकल दवाइयों से भी इसका इलाज़ संभव है , जिससे अन्य  कोई बीमारी न होने पाए और हम अपने जीवन को खुश हाल बना सकें . ध्यान  रहे , 
लापरवाही न बरतें और सपत्निक विचार कर जल्द से जल्द उपचार करवा लेवें , जिस से हमारा  शरीर स्वस्थ रहेगा - डॉ. मुकेश राघव